Wednesday 19 September 2018

Munawwar Rana Complete Book Maa - A Heart Touching Poems Collection..

Munawwar Rana Complete Book Maa - A Heart Touching Poems Collection
पुस्तक   : माँ
लेखक     : मुनव्वर राना
मूल्य      : 25
प्रकाशक : वाली अस्सी अकादमी,8-फर्स्ट                         फ्लोर,एफआई! ढिंगरा अपार्टमेंट,
                 लखनऊ-226001, 
                 उत्तर प्रदेश,  भारत !

अपनी बात

शब्दकोशों के मुताबिक ग़ज़ल का मतलब महबूब से बातें करना है ! अगर इसे सच मान लिया जाए तो फिर महबूब “माँ” क्यों नहीं हो सकती ! मेरी शायरी पर मुद्दतों, बल्कि अब तक ज्यादा पढ़े-लिखे लोग Emotional Blackmaling का इल्ज़ाम लगाते रहे हैं। अगर इस इल्ज़ाम को सही मान लिया जाए तो फिर महबूब के हुस्न, उसके जिस्म, उसके शबाब, उसके रुख व रुख़सार, उसे होंठ, उसके जोबन और उसकी कमर की पैमाइश को अय्याशी क्यों नहीं कहा जाता है !
अगर मेरे शेर Emotional Blackmaling हैं तो श्रवण कुमार की फरमां-बरदारी को ये नाम क्यों नहीं दिया गया? जन्नत माँ के पैरों के नीचे है, इसे गलत क्यों नहीं कहा गया? मैं पूरी ईमानदारी से इस बात का तहरीरी इकरार करता हूँ कि मैं दुनिया के सबसे मुक़द्दस और अज़ीम रिश्ते का प्रचार सिर्फ़ इसलिए करता हूँ कि अगर मेरे शेर पढ़कर कोई भी बेटा “माँ” की ख़िदमत और ख़याल करने लगे, रिश्तों का एहतेराम करने लगे तो शायद इसके बदले में मेरे कुछ गुनाहों का बोझ हल्का हो जाए।
ये किताब भी आपकी ख़िदमत तक सिर्फ़ इसलिए पहुँचाना चाहता हूँ कि आप मेरी इस छोटी-सी कोशिश के गवाह बन सकें और मुझे भी अपनी दुआओं में शामिल करते रहें।
ज़रा-सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये, 
दिये से मेरी “माँ” मेरे लिए काजल बनाती है !
इस किताब की बिक्री से हासिल की गई तमाम आमदनी “माँ फ़ाउण्डेशन” की ओर से ज़रूरतमन्दों की इमदाद के लिए ख़र्च की जाएगी ! --मुनव्वर राना

तमाम उम्र ये झूला नहीं उतरता है

मेरी माँ बताती है कि बचपन में मुझे सूखे की बीमारी थी, माँ को यह बताने की ज़रूरत क्या है..? मुझे तो मालूम ही है कि मुझे कुछ-न-कुछ बीमारी ज़रूर है क्योंकि आज तक मैं बीमार सा हूँ ! दरअस्ल मेरा जिस्म बीमारी से रिश्तेदारी निभाने में हमेशा पेशपेश रहा है ! शायद इसी सूखे का असर है कि आज तक मेरी ज़िन्दगी का हर कुआँ खुश्क है.. आरजू का, दोस्ती का, मोहब्बत का, वफ़ादारी का ! 
माँ कहती है बचपन में मुझे हँसी बहुत आती थी.. हँसता तो मैं आज भी हूँ लेकिन सिर्फ़ अपनी बेबसी पर, अपनी नाकामी पर, अपनी मजबूरियों पर और अपनी तनहाई पर.. लेकिन शायद यह हँसी नहीं है, मेरे आँसुओं की बिगड़ी हुई तस्वीर है, मेरे अहसास की भटकती हुई आत्मा है ! मेरी हँसी “इंशा” की खोखली हँसी, “मीर” की ख़ामोश उदासी और “ग़ालिब” के जिद्दी फक्कड़पन से बहुत मिलती-जुलती है !
मेरे हँसी तो मेरे ग़मों का लिबास है,
लेकिन ज़माना इतना कहाँ ग़म-शनास है !
पैवन्द की तरह चमकती हुई रौशनी, रौशनी में नज़र आते हुए बुझे-बुझे चेहरे, चेहरों पर लिखी दास्तानें, दास्तानों में छुपा हुआ माज़ी, माज़ी में छुपा हुआ मेरा बचपन, जुगनुओं को चुनता हुआ बचपन, तितलियों को पकड़ता हुआ बचपन, पे़ड़ की शाखों से झूलता हुआ बचपन, खिलौनों की दुकानों को ताकता हुआ बचपन, बाप की गोद में हँसता हुआ बचपन, माँ की आगोश में मुस्कुराता हुआ बचपन, मस्जिदों में नमाज़ें पढ़ता हुआ बचपन, मदरसों में सिपारे रटता हुआ बचपन, झील में तैरता हुआ बचपन, धूल-मिट्टी से सँवरता हुआ बचपन, नन्हें-नन्हें हाथों से दुआएँ माँगता हुआ बचपन, गुल्ले से निशाने लगाता हुआ बचपन, पतंग की डोर में उलझा हुआ बचपन, नींद में चौंकता हुआ बचपन, ख़ुदा जाने किन भूल-भुलैयों में खोकर रह गया है, कौन संगदिल इन सुनहरे दिनों को मुझसे छीनकर ले गया है, नदी के किनारे बालू से घरौंदे बनाने के दिन कहाँ खो गए, रेत भी मौजूद है, नदी भी नागिनों की तरह बल खा कर गुज़रती है लेकिन मेरे यह हाथ जो महल तामीर कर सकते हैं, अब घरौंदे क्यों नहीं बना पाते, क्या पराँठे रोटियों की लज़्ज़त छीन लेते हैं, क्या पस्ती को बलन्दी अपने पास नहीं बैठने देती, क्या अमीरी, ग़रीबी का ज़ायक़ा नहीं पहचानती, क्या जवानी बचपन को क़त्ल कर देती है..?
मई और जून की तेज़ धूप में माँ चीखती रहती थी और बचपन पेड की शाखों पर झूला करता था, क्या धूप चाँदनी से ज्यादा हसीन होती है, माचिस की ख़ाली डिबियों से बनी रेलगाड़ी की पटरियाँ चुराकर कौन ले गया, काश कोई मुझसे कारों का ये क़ाफ़िला ले ले, और इसके बदले में मेरी वही छुक-छुक करती हुई रेलगाड़ी मुझे दे दे, क्योंकि लोहे और स्टील की बनी हुई गाड़ियाँ वहाँ नहीं रुकतीं जहाँ भोली-भाली ख़्वाहिशें मुसाफ़िरों की तरह इन्तिजार करती हैं, जहाँ मासूम तमन्नाएँ नन्हें-नन्हें होठों से बजने वाली सीटियों पर कान लगाए रहती हैं !

कोई मुझे मेरे घर के सामने वाला कुआँ वापस ला दे जो मेरी माँ की तरह ख़ामोश और पाक रहता था, मेरी मौसी जब मुझे अपने गाँव लेकर चली जातीं तो माँ ख़ौफज़दा हो जाती थी क्योंकि मैं सोते में चलने का आदी था, माँ डरती थी कि मैं कहीं आँगन में कुएँ में न गिर पड़ूँ, माँ रात भर रो-रोकर कुएँ के पानी  से कहती रहती कि, ऐ पानी ! मेरे बेटे को डूबने मत देना, माँ समझती थी कि शायद पानी से पानी का रिश्ता होता है, मेरे घर का कुआँ बहुत हस्सास था, माँ जितनी देर कुएँ से बातें करती थी कुआँ अपने उबलते हुए पानी को पुरसुकूत रहने का हुक्म देता था, शायद वह मेरी माँ की भोली-भाली ख्वाहिशों की आहट को एहतेराम से सुनना चाहता था ! पता नहीं यह पाकीज़गी और ख़ामोशी माँ से कुएँ ने सीखी थी या कुएँ से माँ ने..?

गर्मियों की धूप में जब टूटे हुए एक छप्पर के नीचे माँ लू और धूप से टाट के पर्दों के ज़रिए मुझे बचाने की कोशिश करती तो मुझे अपने आँगन में दाना चुगते हुए चूज़े बहुत अच्छे लगते जिन्हें उनकी माँ हर खतरे से बचाने के लिए अपने नाजुक परों में छुपा लेती थी ! माँ की मुहब्बत के आँचल ने मुझे तो हमेशा महफूज रखा लेकिन गरीबी के तेज झक्कड़ों ने माँ के खूबसूरत चेहरे को झुलसा-झुलसा कर साँवला कर दिया ! घर के कच्चे आँगन से उड़ने वाली परेशानी की धूल ने मेरी माँ का रंग मटमैला कर दिया ! दादी भी मुझे बहुत चाहती थी ! वह हर वक़्त मुझे ही तका करती, शायद वह मेरे भोले-भाले चेहरे में अपने उस बेटे को तलाश करती थी जो ट्रक ड्राइवर की सीट पर बैठा हुआ शेरशाह सूरी के बनाए हुए रास्तों पर हमेशा गर्मेसफ़र रहता था !!

इस किताब में जनाब मुनव्वर राना ने अपने 300 से भी अधिक शेर का संकलन किया है जो की एक औरत के  विभिन्न रूप जैसे की माँ, बहन, पत्नी, बेटी आदि पर लिखे गए है, जो की निम्न हैं..!!

Maa  माँ

Munawwar Rana Maa Part 1
Munawwar Rana Maa Part 2
Munawwar Rana Maa Part 3
Munawwar Rana Maa Part 4
Munawwar Rana Maa Part 5
Munawwar Rana Maa Part 6
Munawwar Rana Maa Part 7
Munawwar Rana Maa Part 8
Munawwar Rana Maa Part 9
Munawwar Rana Maa Part 10
Munawwar Rana Maa Part 11
Munawwar Rana Maa Part 12
Munawwar Rana Maa Part 13
Munawwar Rana Maa Part 14
Munawwar Rana Maa Part 15

Buzurg  बुजुर्ग

Munawwar Rana Maa Part 16

Khud  खुद

Munawwar Rana Maa Part 17
Munawwar Rana Maa Part 18
Munawwar Rana Maa Part 19

Bahan  बहन

Munawwar Rana Maa Part 20

Bhai  भाई

Munawwar Rana Maa Part 21
Munawwar Rana Maa Part 22

Bachche  बच्चे

Munawwar Rana Maa Part 23
Munawwar Rana Maa Part 24

Bahu  बहू

Munawwar Rana Maa Part 25
Munawwar Rana Maa Part 26

Vividh  विविध

Munawwar Rana Maa Part 27
Munawwar Rana Maa Part 28
Munawwar Rana Maa Part 29

Gurbat  ग़ुरबत

Munawwar Rana Maa Part 30

Beti  बेटी

Munawwar Rana Maa Part 31

skpoetry के पाठकों से अनुरोध है कि यदि उन्हें यह पुस्तक अच्छी लगे तो वे "माँ फ़ाउण्डेशन" के सहायतार्थ इसके प्रिंट संस्करण को भी खरीदें ! skpoetry में यह पुस्तक श्री मुनव्वर राना ने इस विचार से संकलित की है कि यह पुस्तक विश्व भर के लोगो तक पहुँच सके और लोग "माँ फ़ाउण्डेशन" के सहायतार्थ आगे आयें ! इस पुस्तक का मूल्य 25 रुपये है और पुस्तक नीचे दिये गये पते से प्राप्त की जा सकती है:- 
10-C, बोलाईदत्त स्ट्रीट, 
कोलकाता - 700073, पश्चिम बंगाल, भारत !



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